Samastipur District of Bihar at a Glance

Lok Sabha Constituencies in Samastipur district, Bihar (MP Constituencies) Khagaria
Samastipur
Ujiarpur
MLA Assembly Constituencies in Samastipur district, Bihar Kalyanpur (SC)
Warisnagar
Samastipur
Ujiarpur
Morwa
Sarairanjan
Mohiuddinnagar
Bibhutipur
Rosera
Hasanpur

About Samastipur District :

Samastipur district spread over an area of 2904 sq. kms. The district is bounded on the north by the Bagmati River which separates it from Darbhanga district. On the west it is bordered by Vaishali and some part of Muzaffarpur district, on the south by the Ganges, while on its east it has Begusarai and some part of Khagaria district. According to the 2011 census, Population Density in the District is 1465 per sq.km. and the total population is 4.25 million. The district comprises of 4 sub-divisions, and 20 Community Development Blocks. It has 5 towns and 1248 villages. Infrastructure wise Samastipur is very strong. It is the Divisional Headquarters of the North Eastern railway. Thaneshwar Temple is a very famous tample of Lord Shiva, and is situated at the heart of the city. Durga temple in Kessopatti is one of the oldest temple. Manipur bhagwatisthan is one of the oldest and lively durga temple in Shekhopur, Samastipur. Khudneswar Siva Temple located 17 km form Samastipur near Morwa block is unique example of Hindu-Muslim unity.

District at a Glance

  • District – 
  • Headquarters – 
  • State
Area in Sq Km (Census 2011)
  • Total – 
  • Rural – 
  • Urban – 
Population (Census 2011)
  • Population – 
  • Rural – 
  • Urban – 
  • Male – 
  • Female – 
  • Sex Ratio (Females per 1000 males) – 
  • Density (Total, Persons per sq km) – 
Constituencies
  • Assembly
  • Loksabha

Tourist Places :

शिवाजीनगर प्रखंड : उदयनाचार्य के डीह करियन

करियन ग्राम स्थित उदयनाचार्य डीह का प्राचीन भग्नावशेष है । दसवीं सदी में उदयनाचार्य ने बौद्धों को शास्त्रार्थ में अनेक बार पराजित किया । उदयानाचार्य के डीह करियन की भौगोलिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक परिवेश काफी महत्त्वपूर्ण है । उदयनाचार्य द्वारा रचित- आत्मतत्व, विदेह आदि ग्रंथों में मात्र रोसड़ा का ऐतिहासिक वैशिष्टय् ही नहीं अपितु तत्कालीन विश्व एवं राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्धृत हैं ।

रोसड़ा प्रखंड :
 

कबीर मठ : सम्पूर्ण भारत में 15 कबीर मठ हैं, जिनमें 02 कबीर मठ रोसड़ा में अवस्थित है । अपने भ्रमण के दौरान कबीर का रोसड़ा में आगमन हुआ और उनकी स्मृति में उनके शिष्यों ने दोनों कबीर मठों की स्थापना की ।

बाबा का मजार : यू.आर.कॉलेज, रोसड़ा के पूरब 13वीं-14वीं सदी के मुस्लिम फकीर बाबा का मजार स्थित है । उनके ठीक बगल में उनके हिन्दु शिष्य की समाधि भी बनी हुई है, जहाँ दोनों धर्मों के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं
विद्यापतिनगर :

विद्यापतिधाम :  बिहार का देवघर के रूप में चर्चित यह स्थान शिव भक्तों का तीर्थ स्थली है, जहाँ राज्य के बाहर के श्रद्धालु आकर जलाभिषेक कर मन्नत माँगते हैं । अनुमंडल मुख्यालय, दलसिंहसराय से 08 किलोमीटर दूर दक्षिण बाबा के इस धाम में पहुँचने के लिए बरौनी-हाजीपुर रेल खंड पर स्थित विद्यापतिनगर स्टेशन के पास है, जहाँ पहुँचने के लिए दलसिंहसराय उच्च पथ से टेम्पो सुविधा भी है। इसी स्थल पर स्वयं शंकर विद्यापति के चाकरी करते हुए अंर्तध्यान हो गये थे ।

मंगलगढ़ :
मंगलगढ़ : समस्तीपुर-खगडि़या रेल मार्ग के नयानगर स्टेशन से 4 कि0मी0 उत्तर लगभग ढाई वर्ग कि0मी0 क्षेत्र में मिट्टी के ऊँचे प्राचीरों से घिरे भूभाग में अवस्थित है। यहाँ से मौर्य कालीन मृण्मूर्तियां, गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएं, पालकालीन प्रस्तर मूर्तियां आदि मिली हैं जो कुमार संग्रहालय, हसनपुर (समस्तीपुर), चन्द्रधारी संग्रहालय, दरभंगा एवं व्यक्तिगत संग्रह (देवधा/रोसड़ा) में उपलभ्य है। इस मौर्यकालीन गढ़ का अन्तर संबंध जयमंगलगढ़ (बेगुसराय) से अनुश्रुत है। लेकिन पुरातात्विक उत्खनन से यह वंचित है। यहां की श्मषान भूमि में अवस्थित शिव मंदिर की दीवार में मगरमुखी जलढरी (पालकालीन) लगी हुई है। यहां से संकलित भैरव की छोटी प्रस्तर मूर्ति एवं त्रिशुल अंकित ताम्र मुद्रा कुमार संग्रहालय में संरक्षित है।
वारी :
वारी : जिला के सिंगिया प्रखण्ड (दरभंगा कुशेश्वर स्थान थल मार्ग भाया बहेड़ी ) से आठ कि0मी0 उत्तर वारी एक पुराबहुल गाँव है। यहाँ डेग-डेग और घर-घर में पुरावशेष भरे पड़े है। यहाँ की गढ़ी से एक विशाल सहस्त्रमुखी शिवलिंग,मकरमुखी जलढरी, षटभुजी भगवती तारा (27″x14″ दस महाविद्या में परिगणित), ललितासन में बैठी बौद्ध देवी तारा (25″x23″) गुप्तकालीन ईंटें (12.5″x8.5″x2.25″), अलंकृत द्वार स्तंभ आदि भारतीय कला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है (दर्शनीय मिथिला-सत्य ना0 झा सत्यार्थी, भाग-8, लहेरियासराय, दरभंगा, 2002 ई0)।
सिमरिया-भिण्डी :
सिमरिया-भिण्डी : दरभंगा-समस्तीपुर थलमार्ग में दरभंगा से दक्षिण-पश्चिम 25 कि0मी0 दूर मिर्जापुर चैक से पांच कि0मी0 पूरब में टीले पर बसा गांव है सिमरिया-भिण्डी । टीले से मिली अष्टभुजी काले पत्थर की बनी महिषासुर मर्दिनी (48×30 से0मी0), ललितासन में आसीन उमामाहेश्वर (44×20) तथा सूर्य की क्षतिग्रस्त प्रस्तर मूर्ति के अलावा एक पुराना कूप, हिरण का कंकाल, चक्की और सिलौटी मिली है। महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की पालकालीन प्रस्तर मूर्ति भगवती मंदिर में स्थापित है जबकि सूर्य की पालोत्तर कालीन प्रस्तर प्रतिमा पेड़ की जड़ में रखी हुई है। यह कल्याणपुर प्रखंड में पड़ता है (दर्शनीय मिथिला भाग-2, सत्यार्थी, लहेरियासराय, दरभंगा, 2001 ई0)। यह पंचदेवोपासक देवग्राम था।
नरहन स्टेट :
नरहन : नरहन को ऐतिहासिकता प्रदान करने वाले द्रोणवार राजवंश के तेरह भूपतियों ने इसे एक राजधानी नगर के रूप में विकसित किया। नरहन स्टेट द्वारा बनाये गये राजमहल, मंदिर, पुष्करिणी, पुल आदि इसके प्रमाण हैं। स्टेट में इतिहास और पुरातत्व की बहुत सारी वस्तुएँ बँटकर बनारस चली गयी, शेष गुमनामी झेल रही है। इसी क्षेत्र के चकबिदेलिया गाँव में पालयुगीन मंदिर के गर्भगृह में सूर्य की प्रस्तर मूर्ति (दो फीट लंबी), शिवलिंग और नंदी की मूर्तियां स्थापित है। नरहन स्टेट से 10 कि0मी0 दक्षिण में अवस्थित यह वैद्यों की ऐतिहासिक बस्ती है। समस्तीपुर से रोसड़ा जाने के स्थल मार्ग में केओस में महिषासुरमर्दिणी की एक खंडित कर्णाटकालीन प्रस्तर मूर्ति मिली है, जो अन्य पुरावशेषों के साथ वहीं रखी है।
कुमार संग्रहालय, हसनपुर (समस्तीपुर) :
कुमार संग्रहालय, हसनपुर (समस्तीपुर) : 1958 में डा0 मौन द्वारा स्थापित इस संग्रहालय में जिला के मंगलगढ़, पांड, भरवाड़ी, कुमरन आदि के अलावा चेचर (वैशाली), श्रीनगरगढ़ (सहरसा), चण्डी (पूर्वी चम्पारण) मोरंग (नेपाल) आदि के पुरावशेषों एवं कलात्मक सामग्रियों का अद्भुत संग्रह है। यहाँ प्राचीन प्रस्तर एवं धातु की मूर्तियाँ, मृण्मूर्तियाँ, ऐतिहासिक सिक्के, मिट्टी की मोहरें, प्राचीन पाण्डुलिपियाँ, मनके, मध्यकालीन शस्त्र-अस्त्र, मिथिला लोकचित्रकला, पुरानी हस्तकला के नमूने, मुगलकालीन पर्स, फरमान आदि पुरावशेषों ने इसकी गरिमा बढ़ा दी है। राज्य सरकार द्वारा निबंधित इस संग्रहालय का अधिग्रहण कर जिला संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाना आवश्यक है।
पांड़ बनाम पाण्डवगढ़ :
पांड़ बनाम पाण्डवगढ़ : समस्तीपुर-बरौनी रेलमार्ग में अवस्थित दलसिंहसराय रेलवे स्टेशन से प्रायः दस कि0मी0 दक्षिण – पश्चिम में अवस्थित पांड़ बनाम पाण्डवगढ़ एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक पुरास्थल है। आज से प्रायः पचीस वर्ष पहले यहाॅ से भिक्षुणी की मृण्मूर्ति पुराने पात्रखण्ड आदि मिले थे (पाण्डव स्थान का सच, आर्यावर्त, पटना)। यहां के टीलों में प्राचीन कुषाण कालीन ईंटों (2’x1’x3′) की दीवार अवशिष्ट है। यह स्थल चारो तरफ से चैरों से घिरा है । काशी प्र0 जायसवाल शोध संस्थान, पटना की ओर से कई वर्षों तक पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त पुरावशेष मुख्यतः कुषाणकालीन हैं। इन पुरावशेषों में ’पुलक’ नामक व्यापारी के मृण्मोहर से यह कोई राजकीय गढ़ न होकर यह व्यापारिक केन्द्र ही अधिक प्रतीत होता है, यद्यपि जनश्रुति इसे पाण्डवों के अज्ञातवास और लाक्षागृह प्रसंग से जोड़ती है। उत्खनन प्रतिवेदन की तैयारी शोध संस्थान में चल रही है। खुदाई मंे प्राप्त भवनावशेष से इसे बौद्धकालीन गहईनगर होना संभावित बताया गया है (समस्तीपुर का सांस्कृतिक इतिहास- रामचन्द्र पासवान, समस्तीपुर)। पुरातात्विक उत्खनन 750×400 मीटर क्षेत्र में हुआ है। उत्खनन से नवपाषाणकाल से गुप्तकाल तक छह सांस्कृतिक चरणों में विकसित होने के साक्ष्य मिले है। कुषाणकालीन ताम्र सिक्के, कील-काँटे, मनके, हड्डी के वाणाग्र, सामुदायिक चुल्हे आदि मिले हैं। यहाँ की पुरासामग्रियाँ, कुमार संग्रहालय, हसनपुर, बेगुसराय एवं पटना में संरक्षित है।

 

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